मनोविज्ञान में मनुष्य के मन को अलग अलग भागो में देखते हैं। चेतन व अवचेतन मन। चेतन मन, मन का वह स्तर होता है जो सक्रीय अवस्था में रह कर विचार, तर्क से कोई कार्य करता है। जब हम कुछ भी नया सीखते हैं तो चेतन मन वहाँ कार्य कर रहा होता है। इस समय जो भी
हम महसूस करते हैं, देख रहे होते हैं, सब चेतन मन की अवस्था में कर रहे होते हैं। अर्थात जो भी हम प्रथम बार कर रहे होते हैं वहाँ चेतन मन ही सक्रीय रहता है। इसमें हमारा पूरा ध्यान उस नए कार्य, नयी घटना पर ही होता है। जैसे यदि हम कोई मोटर साइकिल चलाना सीख रहे होते हैं तो हमारा पूरा ध्यान हैंडल, रेस, क्लच, गियर, ब्रेक, सड़क पर ही होता है।
अवचेतन मन, मन की वह अवस्था है जहाँ हम सक्रिय होकर भी सक्रिय नहीं रहते हैं। यहाँ वो सभी कार्य आते हैं जो हम पहले कर चुके होते हैं और हमारा मन उसका अभ्यस्त हो चुका होता है। जैसे यदि हम मोटर साइकिल सीख चुके होते हैं तब हम स्वतः ही सभी कार्य कर रहे होते हैं बिना ध्यान दिए। हम मोटर साइकिल चला रहे होते हैं और किसी से बात भी कर रहे होते हैं। ये अवस्था अवचेतन मन की अवस्था होती है।
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मन एक संचार व नियंत्रण का तंत्र है जीव व उसके वातावरण के बीच। यहाँ मन दो स्तरों पर कार्य करता है – विश्लेषणवादी स्तर और प्रतिक्रियावादी स्तर। इसमें प्रतिक्रियावादी मन का किसी के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव रहता है। इस प्रकार मन अपने अंदर संस्कारों को बनाता है और उसके आधार पर तत्पश्चात विश्लेषणवादी मन निर्णय लेता रहता है।
एक व्यक्ति के प्रतिक्रियावादी मन में ऐसी कई घटनाएं होती हैं, जो लगातार उस पर प्रभाव डालती रहती हैं और उसे तर्कहीन तरीके से कार्य करने और उनको महसूस करने व सोचने के लिए प्रेरित करती रहती हैं जो वास्तव में उसकी अपनी भावनाएं और विचार नहीं हैं। इसलिए यहाँ प्रतिक्रियावादी मन तर्कहीन भय, भावनाये और व्यवहार का मुख्य स्त्रोत हो जाता है।
मन के कुछ रोचक तथ्य
१. मन को जिसमें आनंद आने लगता है, मन स्वयं को कहीं भटकने नहीं देता।
२. मन को जिसमें आनंद नहीं आता वहाँ से ये पलायन कर जाता है।
३. ये सामान्य मनुष्यों के नियंत्रण से बाहर ही रहता है लेकिन प्रत्येक मनुष्य को ये भ्रम देता है कि उसका मन उसके नियंत्रण में है।
४. जब अपरिपक़्व मन को किसी आनंददायक स्थिति से हटाओ तो ये मन चिड़चिड़ाता है।
५. मन एक उत्तम सेवक है जबकि ये एक खतरनाक राजा है।
६. एक अपरिपक्व मन बहुत आसानी से ट्रिगर हो जाता है। जैसे यदि किसी व्यक्ति को आप किसी कटोरे में कोई स्वादिष्ट मिठाई देते हैं और अचानक से आप कहते हैं कि अरे ! ये तो वही कटोरा है जिसमे मेरा कुत्ता खाता है जिसे आजकल कीड़े लग गए हैं तो ये बात सुन कर व्यक्ति के मन ने क्या क्या कल्पनायें करनी आरम्भ कर दी होगी। लेकिन फिर अचानक से आप कहते हैं कि नहीं नहीं, ये वो कटोरा नहीं है तब उस व्यक्ति के मन में क्या चल रहा होगा, आप समझ सकते हैं। इसलिए इस मन को बिना किसी तथ्य के भी ट्रिगर किया जा सकता है।
७. जो हम सोचते रहते हैं मन वो करने लगता है। जैसे यदि हम सोचे की हम बीमार हैं तो हमारा मन हमे बीमार कर देगा।
८. अच्छा लगना या बुरा लगना हमारे मन पर निर्भर करता है।
स्मृतियाँ और हमारा मन
मन, पहले की स्मृतियों के आधार पर चलता है। यदि मन सक्षम है तो वर्तमान में जो भी घटनाएं होती हैं उसका सम्बन्ध पहले की घटनाओं से जोड़ देता है। ये मन पहले की स्मृतियों के आधार पर प्रतिक्रिया करता है और निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है। आज प्रत्येक व्यक्ति ये चाहता है कि उसकी स्मृति ऐसी हो जाये कि वो जो देखे, जो पढ़े, जो सुने, उसे याद रहे। सोचिये यदि मनुष्य को अपने भूत की सभी बातें, घटनाएं आदि याद रहे तो मन क्या दुर्गति कर सकता है। क्या मन हर क्षण एक भार में नहीं रहेगा ? मुझे तो लगता है कि उस व्यक्ति का जीवन नर्क बना सकता है ये मन। जैसे यदि आपको कोई भाषा पढ़ने आती है और यदि कहीं दीवार पर कुछ गलत बात लिखी हो तो आपके न चाहते हुए भी आपका मन उसे पढ़ कर आपको ट्रिगर कर सकता है। इसी प्रकार यदि आपकी भूत की सभी स्मृतियाँ जाग गयी और आप एक सिद्ध पुरुष नहीं है तो ये मन हर क्षण आपको ट्रिगर करता ही रहेगा।
मन की शक्तियां
मन की अपार संभावनाएं हैं, मन की अपार सी क्षमताएं भी हैं। लेकिन क्या हम जिन्हे मन की क्षमताये मान कर, उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं वो ऐसी ही होंगी जैसा हम चाहते हैं ? तो ध्यान रखिये यदि मन नियंत्रित नहीं है तो वही क्षमताएं विकृतियों में बदल जाती है। वही क्षमताएँ
किसी के लिए साकारात्मक होंगी तो किसी के लिए नकारात्मक। ये सभी इस बात पर निर्भर करता है कि मन को वो व्यक्ति कितना नियंत्रित किये हुए है। यहाँ नियंत्रण का अर्थ ये नहीं है कि मन को रोक दिया जाए जैसा सामान्य लोग समझते हैं। यहाँ नियंत्रण का अर्थ है जब जैसे आप चाहे मन को चला सके।
ऐसे कई लोग हुए जिन्होंने मन को पूर्ण रूप से समझे बिना, मन पर कार्य किया और अंत में उनकी स्थिति इसी मन की क्षमताओं के कारण दयनीय रही। जैसे सिग्मंड फ्रायड, रॉन हब्बर्ड , एडगर केसे आदि। इसलिए मन को जानने का प्रयास अवश्य करना चाहिए लेकिन सही प्रक्रियाओं से।